गोस्वामी तुलसीदास पत्नी से मिलने के क्रम में घटित घटना के परिणाम स्वरुप तुलसीदास बने एवं प्रभु श्रीराम की कथा लोगों को को सुनाने लगे। चित्रकुट के घाट पर प्रभु श्रीराम के दर्शन प्राप्त हुए।
तुलसीदास के जीवन से जुड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण घटनाएँ, कथाएं, उनकी रचनाओं, पत्नी के साथ घटित घटना एवं प्रभु श्रीराम के दर्शन आदि सभी जानकारियों के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़ें।
तुलसीदास का जीवन परिचय
नाम | :- गोस्वामी तुलसीदास |
जन्म | :- 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) |
जन्म स्थान | :- रामबोला, राजापुर , चित्रकूट , उत्तर प्रदेश, भारत |
प्रमुख रचनाएँ | :- रामचरित्रमानस |
पिता का नाम | :- हुलसी दूबे |
पत्नी का नाम | :- रत्नावली |
गुरु | :- नरहरिदास |
मृत्यु | :- 1623 ई० (संवत 1680 वि०), वाराणसी |
अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ | :- ‘विनय पत्रिका’, ‘कबीर बिजक’, ‘जानकी मंगल’ और ‘बाल काण्ड’ |
सामाजिक संदेश | :- जीवन में सफलता पाने के लिए आत्म-ज्ञान, सद्गुण और समझदारी जरूरी |
धर्म | :- हिन्दू |
दर्शन | :- वैष्णव |
जन्म
तुलसीदास का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) में उत्तर प्रदेश के चित्रकुट जिले में स्थित राजापुर के निकट रामबोला गांव में हुआ था।
पं० सच्चिदानंद के दो पुत्र थे, पं० आत्माराम दुबे और पं० जीवाराम दुबे। ब्राह्मण पं० आत्माराम दुबे के पुत्र का नाम सरयूपारीण एवं हुलसी दुबे के पुत्र का नाम महाकवि गोस्वामी तुलसीदास था।
तुलसीदास ने अपनी शिक्षा जन्मस्थान से ही शुरू की थी। वे बाल्यकाल से ही धार्मिक उद्देश्यों की प्राथमिकता देते रहे थे।
तुलसीदास ने अपने जीवन के विभिन्न अवसरों पर कई काम किए थे। वे धार्मिक उद्देश्यों को जीवन में लाने के लिए धर्मग्रंथों के अनुवाद करते रहे थे।
विवाह
29 वर्ष की आयु में उनकी विवाह राजापुर से थोडी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गाँव की अति सुन्दरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ हुआ।
तुलसीदास बनने की मुख्य घटना
शादी के बाद चूँकि गौना नहीं हुआ था अत: कुछ समय के लिये वेद-वेदांग के अध्ययन के लिए वे काशी चले गये और वहाँ शेषसनातन जी के पास रहकर इसमें जुट गये।
वहाँ रहते हुए अचानक एक दिन उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी और वे व्याकुल होने लगे। जब उनसे नहीं रहा गया तो गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये।
पत्नी रत्नावली चूँकि उस समय मायके में ही थी क्योंकि तब तक उनकी पत्नी का गौना नहीं हुआ था। तुलसीराम ने भयंकर अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की और सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में जा पहुँचे।
रत्नावली इतनी रात गये । अपने पति तुलसीदास को अकेले अँधेरी रात में आया देख कर आश्चर्यचकित हो गयी, और लोक-लाज के भय से जब उन्होंने तुलसीदास को समझाय और कहा चुपचाप वापस घर जाने का चले जाईए ।
लेकिन इसके विपरीत तुलसीदास ने उनसे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के माध्यम से जो शिक्षा उन्हें दी । रत्नावली ने जो दोहा कहा था वह इस प्रकार है:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
उसने ही तुलसीराम को तुलसीदास बना दिया। यह दोहा सुनते ही उन्होंने उसी समय पत्नी को वहीं उसके पिता के घर छोड़ दिया और वापस अपने गाँव राजापुर लौट गये।
राजापुर में अपने घर जाकर जब उन्हें यह पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता भी नहीं रहे और उनका पूरा घर नष्ट हो चुका है तो उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ।
उन्होंने विधि-विधान पूर्वक अपने पिता जी का श्राद्ध किया और गाँव में ही रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे।
भगवान श्रीराम से भेंट
कुछ समय राजापुर में रहने के बाद वे काशी लौट आए और वहां लोगों को रामायण की कहानी सुनाने लगे। एक दिन वर्णन के दौरान, उन्हें मानव रूप में एक भूत का सामना करना पड़ा।
जिसने उन्हें भगवान हनुमान के बारे में बतलाया। तुलसी दास ने हनुमान से मिलने पहुँचे और उनसे प्रार्थना करने के बाद भगवान रघुनाथ जी के दर्शन करने का अनुरोध किया।
हनुमान जी ने उत्तर दिया, “आप चित्रकूट में रघुनाथ जी के दर्शन करेंगे”। इस पर तुलसी दास चित्रकूट की ओर चल पड़े।
चित्रकूट पहुँचकर वे रामघाट पर बैठ गए। एक दिन जब वे सैर के लिए निकले तो अचानक उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए।
उसने देखा कि दो सुंदर राजकुमार घोड़ों पर सवार हैं और धनुष-बाण लिए हुए हैं। तुलसी दास उनकी ओर आकर्षित तो हुए पर उन्हें पहचान नहीं सके।
तभी पीछे से हनुमान जी आ पहुँचे और उन्हें पूरी स्थिति समझाते हुए उन्हें न पहचानने का खेद हुआ। हनुमान जी ने तब उन्हें वचन दिया कि वे सुबह भगवान राम के दर्शन करेंगे।
संवत 1607 की मौन अमावस्या पर, भगवान राम एक बार फिर बुधवार को तुलसी दास के सामने प्रकट हुए। वे एक बालक के रूप में आए और तुलसी दास से पूछा, “बाबा! क्या आपके पास चंदन है?
क्या आप हमें चंदन दे सकते हैं?” हनुमान जी ने सोचा कि कहीं वे फिर से मूर्ख न बन जाएं, इसलिए उन्होंने तोते का रूप धारण किया और निम्न दोहा कहा:
चित्रकूट के घाट पर, भई सन्तन की भीड़
तुलसीदास चंदन घीसेत, तिलक देत रघुबीर
भगवान राम की इस सुन्दर छवि को निहार कर भाव मुग्ध हो सुध बुध खो बैठे, तब भगवान श्री राम स्वयं चंदन लेकर अपने तथा उनके माथे पर चंदन लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।
सामाजिक संदेश
उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचनाएं ‘रामचरितमानस’ हैं, जो भारतीय साहित्य के अनमोल ग्रंथों में से एक है।
इस ग्रंथ में तुलसीदास ने भगवान राम के चरित्र को अपनी कलम से जी तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें वे भगवान राम के जीवन की कहानी को एक कविता के रूप में बताते हैं।
इस ग्रंथ को लोग आमतौर पर ‘तुलसीरामायण’ भी कहते हैं। इसके अलावा, तुलसीदास ने ‘विनय पत्रिका’, ‘कबीर बिजक’, ‘जानकी मंगल’ और ‘बाल काण्ड’ जैसी कई अन्य महत्वपूर्ण रचनाएं भी लिखी हैं।
तुलसीदास एक ज्ञानी, संत और दार्शनिक थे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान धर्म, संस्कृति और समाज के विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने धर्म के महत्व को स्पष्ट किया और इसे अपने जीवन का मूल्यवान अंश माना।
तुलसीदास की शिक्षा के बारे में बहुत कम जानकारी है। उनके जीवन के बारे में भी बहुत कुछ अनसुना है। लेकिन उनकी रचनाओं की वजह से वे एक महान व्यक्ति बन गए हैं।
तुलसीदास की रचनाओं में सबसे अधिक प्रसिद्धता और प्रभाव रामचरितमानस के अनुवाद में होती है।
आज भी, तुलसीदास के विचार लोगों के मन में जीवंत हैं। उनकी रचनाएं हमें धर्म, संस्कृति और इंसानियत की महत्वपूर्ण बातों के बारे में समझाती हैं।
तुलसीदास की रचनाएँ
तुलसीदास का नाम उनकी लोकप्रिय रचनाओं में से एक ‘रामचरितमानस’ में दी गई कहानी के कथाकार वाल्मीकि के रचनाकार तुलसीदास से है।
उन्होंने रामायण, महाभारत और पुराणों जैसी कई प्रसिद्ध रचनाएं लिखीं। उनकी लोकप्रिय रचनाओं में से कुछ हैं: ‘रामचरितमानस’, ‘हनुमान चालीसा’, ‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’ और ‘जानकी मंगला’।
उनकी रचनाओं के माध्यम से वे लोगों को अपने दर्शन के साथ प्रेरित करते थे। उनके जीवन का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि वे धर्म और आध्यात्मिकता के महत्व को समझने में लोगों की मदद करते थे।
तुलसीदास की रचनाएं आज भी लोकप्रिय हैं और उन्हें देश की राष्ट्रीय धर्म गीता के साथ जोड़कर देखा जाता है
तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक हैं रामचरितमानस, जो रामायण के उपरांत लिखा गया था। इस ग्रंथ में तुलसीदास ने रामायण की कहानी को अपने दृष्टिकोण से दर्शाया है और इसे भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण भाग बनाया है।
तुलसीदास की रचनाओं में रामचरितमानस उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ में वे भगवान राम के जीवन के बारे में लिखते हैं और इससे हमें रामायण के बारे में अधिक जानकारी मिलती है।
इसके अलावा उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में विनय पत्रिका, दोहा शतक, कबीर वाणी आदि शामिल हैं। तुलसीदास ने इन रचनाओं के माध्यम से समाज में उत्साह और आदर्श जीवन की भावना को फैलाया।
Conclusion
तुलसीदास का जीवन एक संत और कवि के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे एक व्यक्ति थे जो सभी को शांति और सुख देने के लिए अपनी रचनाओं का उपयोग करते थे।
तुलसीदास की रचनाओं में रामचरितमानस उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। इस ग्रंथ में वे भगवान राम के जीवन के बारे में लिखते हैं और इससे हमें रामायण के बारे में अधिक जानकारी मिलती है।
इसके अलावा उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में विनय पत्रिका, दोहा शतक, कबीर वाणी आदि शामिल हैं। तुलसीदास ने इन रचनाओं के माध्यम से समाज में उत्साह और आदर्श जीवन की भावना को फैलाया।